पिंजरे में पंख फैलाये,एक अरमान से बैठे हैं
डाकिये कि थैली में,एक बेरंगी पैगाम से बैठे हैं
नदी में उतरती,उन फिसलती सीडियों पर
आँखें मूँद ,मुस्कुराते एक नादान से बैठे हैं
यूँ तो बाहर निकले ,बरसों हो गए
पर सुना है अपने यारों से अब
कि उन रंगीन मैखानो में आज भी
हम उनते ही बदनाम से बैठे हैं
और अब कौनसा हम नीद उड़ायें
तेरी याद में परेशान से बैठे हैं ?
जिन्हें फिक्र नहीं अब हमारी सुनले ज़रा ..
अजी हम अपने घर,अब आराम से बैठे हैं |
- कृष्णेंदु
1 comment:
बहुत बढिया लिखा है कृष्णेंदु.. लिखते रहो,
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