Friday, November 11, 2011

मेरे पहला प्रयास ..आपकी प्रेरणा मिले ,तो बन जाये उपन्यास ..धन्यवाद |

कल रात मैं सो नहीं पाया| नहीं इस बार तुम नहीं थी | वोंह रातें बीत चुकी है ,जब तुम्हारी यादों में अक्सर जगा रहता था | शायद कल खिड़कियाँ कुछ खुली सी रह गयी हों,जाड़े के साथ,कुछ उदासी भी कमरे को घर कर गयी | सुबह हुई और रोज़ कि तरह घडी मेरे साथ दौड़ लगाने को तैयार बैठी थी , पर शायद उसे महसूस हुआ, कि आज उसे अव्वल आने में वोंह ख़ुशी नहीं मिलेगी जो उसे रोज़ मिला करती थी ,शायद इसलिए आज उसने आवाज़ ही न दी |काफी देर तक यूँ ही बिस्तर पर पड़ा रहा| फिर जब उस खुली सी खिड़की से कुछ सारी धूप भी अन्दर आने लगी,कमरे में बड़ती हुई इस भीड़ से दूर जाने के लिए ,न चाहते हुए भी में उठा और उस कुछ खुली से खिड़की को बंद करने पहुंचा ,तब अहसास हुआ कि बाहर कि दुनिया कब की काम पर चल पड़ी है | मैंने उस खिड़की को पूरा ही खोल दिया | मेरे हाथ उस आखिरी सिगरेट को ढूँढ रहे थे जिसे शायद कल रात वहीँ रख छोड दिया था | कुछ पहल करने पर हाथ आ गयी, उसे सुलगा कर वहीँ कुर्सी पर बैठ गया | खिड़की से बाहर कि दुनिया मुझे वैसे भी रास न आने वाली थी , मेरी नज़रें  अपने बिखरे हुए टेबल कि तरफ चल दीं , बहुत सारा सामान पड़ा हुआ था ,पर ऐसा लगा मानो उस  टेबल पर मेरी ज़िन्दगी सिमटी हुई सी रखी थी | कुछ रसीदे ,कुछ किताबें,उन्खुली चिट्टियाँ,मेरी घडी,चिल्लर से भरा हुआ एक कप ,कुछ फाइल,एक लैपटॉप, एक चाय का गिलास,गिटार के तार,बीते हुए साल कि कुछ ग्रीटिंग कार्ड,और कुछ दिनों पहले का अख़बार ,जिसे मैंने अपनी कलम से कई बार गोदा था,एक नायिका कि तस्वीर जिसकी मैंने दाड़ी-मूछ निकाली थी ,उस अखबार को हटाने पर चाय के गिलास के छोड़े  कुछ निशान मिले | वहीँ किताबो के बीच मेरा पुराना कैमरा मिला ,कभी मैंने उससे तम्हारी कई सारी तस्वीरे ली थी , कुछ तुमे बता कर , कुछ तुमसे छुपाकर |कभी ये तस्वीरे मेरे टेबल पर रखी हुई फोटो-फर्मे पर दिन भर घूमा करती थी | और कभी किसी के पूछने पर में बस मुस्कुरा दिया करता  था | पर न जाने कब वोंह तस्वीरे फीकी पड गयी | अब उस  फोटो फ्रमे कि जगह एक टेबल लेम्प है,जिसकी रौशनी का रंग भी मुझे याद नहीं| बची हुई सिगरेटे को बुझाकर , उस खुली खिड़की को पूरा बंद कर में वापस अपने बिस्तर पर आ बैठा | जब घडी पर नज़र पड़ी तब पता चला दबे पाव उसकी सुईयां काफी आगे निकल चुकी थी | उसे एक चक्कर जो पूरा करना था ,कल सुबह के दौड़ के लिए |

  - कृष्णेंदु

1 comment:

Bohemian said...

आगे का अंक कंहा है?