Monday, November 15, 2010

कई बार सोचा है कि तुझे न सोचूँ
न तेरा रूठना और मेरा मनाना सोचूँ
न तेरे लबोँ को, न तेरी हँसी सोचूँ
तुझे न सोचने का हर बहाना सोचूँ

न तेरी आहट,न तेरा अहसास सोचूँ
न तेरी ऑंखें और न आवाज़ सोचूँ
न तेरी महक न तेरा अंदाज़ सोचूँ
तुझे न सोचने का बस आगाज़ सोचूँ

न संग बिताये दिन,न वोंह रातें सोचूँ
न वोंह कशिश ,न वोंह बातें सोचूँ
न तेरी अंगड़ाई ,न तेरा बदन सोचूँ
तुझे न सोचने का हर जतन सोचूँ

तुझे न सोचने कि सोच कर भी
बस तुझे ही सोच कर रह गया
और जो कभी तुझे सोचा मैंने
बस तेरी ही सोच में बह गया

------कृष्णेंदु -----


2 comments:

Anonymous said...

wah wah masti pankti haiii

Ashutosh Jhureley said...

wah wah.. very good...