Friday, September 17, 2010


इस सुस्त सी ज़िन्दगी में कुछ नया करें
सब मिल बैठ कर हाल चाल बय़ा करें
भीनी भीनी फिज़ा का अहसास भी हो
और अपने सब यार दोस्त पास भी हो

इस शहर को छोड़ कर ,कोई गाँव चले
जहाँ धूप हो सुनहरी और संग छाव चले
जहाँ हो कश्तियाँ और बड़ा समंदर भी
और उमड़ती लहरों पर मेरी नाव चले

कुछ पल ही सही सुस्ताले अगर
इस शहर से चालो संगीन हो जाये
दूर किसी पहाड़ों पर ,तारों के तलें
एक रात ही सही ,बस रंगीन हो जाये

कृष्णेंदु

1 comment:

Anonymous said...

Zindagi Tu hasino se hasin banja..


grt poem keep it up...
can'nt you guess who i am..