Saturday, November 28, 2009


कोई पूछे कि मैं कहाँ जा रहा हूँ ?
एक घर से दूर, एक घर जा रहा हूँ
यहाँ भी अपने और वहाँ भी अपने
ये हवा भी अपनी ,वोह जहाँ भी अपना

कुछ मुस्कुराहटें ,कुछ महकते पल
सफ़र के लिए कुछ सामान रखा है
और भी रखी हैं बहुत सारी यादें
सबके लिए कुछ अरमान रखा है

सब कुछ रख लिया मगर
मेरा यहाँ एक हिस्सा छूट गया
कुछ फुर्सत कि रातें छूट गयीं
और मेरा एक किस्सा छूट गया

लो वक़्त हो चला कि मैं उड़ चलूँ
एक घर को छोड़ , एक घर चलू
अब इन लम्हों के लिए तरसना है
मैं बादल,मुझे कहीं और ही बरसना है

-कृष्णेंदु --



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2 comments:

Unknown said...

Very good poem; especially when you are going back to India. Hope you will be back in UK. Even the picture is very significant! Keep it up this kind of writing.

Anonymous said...

very nice krish... u write poems very well. we will really miss u . Always keep smiling and keep on writing nice poems. All the best for ur future. We r always there to help u if needed.
with regards
shubha