Friday, September 4, 2009


मैं खुद ही मेरा मंदिर
और खुद ही मेरा राम हूँ
मैं खुद ही मेरी मीरा और
खुद ही मेरा श्याम हूँ

मैं खुद हीं मेरी रीत हूँ
मैं खुद ही मेरी प्रीत हूँ
मैं ही खुद मेरी वाणी
मैं ही मेरा संगीत हूँ

मैं ही खुद के शब्द हूँ
मैं ही खुद का कोष हूँ
मैं ही मेरी मूर्छा और
मैं ही मेरा होश हूँ
मैं खुद में खुशहाली हूँ
मैं ही तन हूँ,मैं ही मन हूँ
मुझमें ढूँढो,मैं ही मिलूंगा
मुझ में जीवित मैं जीवन हूँ

मैं ही मेरी परछाई हूँ
मैं खुद मेरा दर्पण
मैं ही मुझमें खोज हूँ
और में मुझमें अर्पण
मैंने सब कुछ जाना है
पर में खुद से मौन हूँ
मैं खुद से ही हूँ पूछता
मैं क्यूँ हूँ ?और मैं कौन हूँ ?

- कृष्णेंदु

1 comment:

Cloud walker said...

wah wah..mazza agaya Krish....one of the best hindi peoms of urs...keep up the good work!!!