हर चेहरा पहचाना सा
इस शहर में अंजान नहीं मिलते
ये वोह पत्थर का जंगल है
जहाँ इन्सान नहीं मिलते
यहाँ रिश्तों नातों के
मिसाल नहीं मिलते
यहाँ किस्से कुर्बानियों के
फिलहाल नहीं मिलते
यहाँ चाहतों की भीड़ में
अरमान नहीं मिलते
लोग मिलते है मगर
पहचान नहीं मिलते
यहाँ नज़रें तो मिलती है
जस्बात नहीं मिलते
जस्बात नहीं मिलते
यहाँ दिल भी मिला करतें हैं
मगर हालात नहीं मिलतें
यहाँ लाखों ज़ुल्म हुयें
कोई खिलाफ नहीं मिलते
ज़िन्दगी गुज़र जाती है
इन्साफ़ नहीं मिलतें
यहाँ मंजिलों की किसे पड़ी
बस चलतें रहने की होड़ है
इस शहर में, बस मैं निष्चल
यहाँ अंधों की एक दौड़ है
-----कृष्णेंदु-----
4 comments:
ek dum sahi kaha...very poetic lines....dil mange more krish bhai....kuch pankthiyan aur likho!!!!!
सचमुच शहर भी जाने पहचाने हैं और लोग भी अन्जान नहीं है , बढ़िया लिखा है |
बहुत अच्छा लिखा है दोस्त ... अब तुम पक्के तोर पर उस लिस्ट मैं हो जिसको मैं पड़ना सदा ही पसंद करता हूँ... बस इसे ही अच्छा अच्छा लिखो और ज्यादा से ज्यादा लोगों के ह्रदय को स्पर्श करो....
Krish, Very well said !!! Good to read it.
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