Friday, July 31, 2009

भीगा मन,भीगा तन
सब मौसम की हैं साजिशे
पर आज तुम नहीं हो फिर
कुछ कम गीली सी है बरिशे


येह फूल,येह पत्तियां
येह महकती ख्वाइशें
आज तुम नहीं हो फिर
कुछ कम गीली सी है बरिशे

येह भीगी ज़मी की खुशबू
येह बहते हवाओं की गुजारिशें
की आज तुम नहीं हो फिर
कुछ कम गीली सी है बरिशे
--कृष्णेंदु

1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

येह भीगी ज़मी की खुशबू
येह बहते हवाओं की गुजारिशें
की आज तुम नहीं हो फिर
कुछ कम गीली सी है बरिशे


सुंदर अभिव्यक्ति .....!!